ज़िंदगी के कुछ टेढ़े मोड़

कभी-कभी ज़िंदगी एक ऐसा मोड़ लेती है

जिसमें हर दिशा जाने में मंज़िल सिर्फ एक ही मिलती है

क्यों एक वक्त हमें अकेले ही लड़ना होता है

क्यों लोगों के साथ के बावज़ूद कई दफ़ा खुद को अकेला पाना होता है

यूं रूठ ना तू मुझसे ज़िंदगी

वरना तेरे रूठते रूठते कहीं मैं तुझसे ना रूठ जाऊं

तेरी फ़िक्र करते करते कहीं मैं खुद की नज़रों में ना गिर जाऊं

ऐसा सोचती थी कि

मैं अपना भाग्य खुद ही लिखती हूं

लेकिन एक पर्ची ने तो मेरी सोच ही बदल दी

खुद को अपने विचारों का मालिक समझती थी

लेकिन एक चेतावनी ने सारी गलतफहमियां ही दूर कर दीं

कभी कभी एक पल में कितना कुछ बदल जाता है

जब उस सुनहरी शाम के बाद अमावस्या कि रात अंधियारा छा जाता है

लेकिन

हर अंधियारी रात के बाद एक सकारात्मक सुबह ज़रूर होती है

हर हिमालय फ़तह ज़िंदगी उन असाधारण बर्फ़ीले रास्तों से होकर गुज़रती है

यदि विफ़लताओं पर विचार करने से सफलता नहीं मिलती

तो ना ही कोई कल्पना चावला इतिहास में अपना नाम गढ़ती

यूं एक मोड़ से खुद को भटकने मत दो

यूं केवल अपना हाथ दिखाकर किसी को भाग्य पढ़ने मत दो

क्योंकि भाग्य उनका भी होता है जिनकी रेखाएं पढ़ने के लिए उनके हाथ नहीं होते मेरे दोस्त!

-श्रेया शुक्ला 

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