दूसरों की तलाश मे
यह कहाँ आ गए हम
दूसरों में ज़िन्दगी ढूढ़ते ढूढ़ते
क्यों खुद ग़ुमशुदा से हो गए हम
वो ख्वाहिश कुछ कर दिखाने की
वह ख्वाहिश कुछ लम्हें बिताने की
वो ख्वाहिश दूसरों कि खुशी की
वह ख्वाहिश उन मासूम पलों की
उस जवानी को ढूढ़ते ढूढ़ते
क्यों मासूमियत से बिछड़ गए हम
उन चार लोगो की ख़ुशी की खातिर
क्यों कभी खुद के लिए ना जिए हम
लोग क्या कहेंगे सोचते सोचते
खुद कि पसंद से बेवफा हो गए हम
क्यों लोगों को दिखाने के लिए
सेल्फ satisfaction को भूल गए हम
क्यों हर बार लोगों के प्यार की खातिर
खुद के प्यार से बिछड़ गए हम
हो सके तो एक बार ज़रूर सोचकर देखना
हो सके तो एक बार फिर खुदसे प्यार करके देखना
खुद की पसंद को अपनाकर देखना
हो सके तो एक बार फिरसे
लोगों कि परवाह करे बिना ज़िन्दगी जी करके देखना
By Shreya Shukla